Sun. Apr 20th, 2025
भगवान बुद्ध के काल में हम जानते है कि भगवान बुद्ध को बुद्धत्व प्राप्ति के पश्चात सबसे पहला भोजन दो व्यापारी तपस्सु और भल्लिक ने दान किया परंतु उसे ग्रहण करने के लिए भगवान के पास भोजन पात्र नहीं था तब चतु महाराजिका देव लोक के देवताओं ने चारों दिशाओं से चार भोजन पात्र भगवान को दिए जिसे भगवान ने एक ही पात्र में समाहित कर दिया! और तपस्सु और भल्लिक का भोजन स्वीकार किया! उसके बाद वह परंपरा बन गई कि चारिका के समय संघ पात्र में ही भोजन स्वीकार कर एकांत स्थान पर जा उस भोजन को ग्रहण करेगा!
परंतु जैसे जैसे संघ का पतन किया जाने लगा वैसे वैसे संघ की मूलभूत आवश्यकता भी लुप्त होने लगी! भारत में चीवर, भोजन पात्र सभी बहुत दुर्लभ सा हो गया! आज चीवर फिर भी दुकानों में उपलब्ध है और उपासिकाएं भी चीवर सिलना सीखने लगी हैं लेकिन जहां तक भोजन पात्र की बात है तो भोजन पात्र एल्यूमीनियम का मिल जाता है जिसमें भोजन करना सेहत के लिए हानिकारक है! परंतु स्टील का पात्र न होने के कारण बहुत सा संघ केवल एल्यूमीनियम के पात्र में ही भोजन करता है!
जब इस श्रामणेरी शिविर के लिए हम पात्र खोजने निकले तो पता चला कि भारत में स्टील के पात्र बनने की परम्परा अभी तक पेंडिंग ही थी जिसे किसी ने संज्ञान में नहीं लिया था! उसी समय यह अद्वितीय शुरुवात की समन्वय सेवा संस्थान के अध्यक्ष राजेश चंद्रा जी ने! उन्होंने यूं तो चीवर दान करने की याचना की परंतु जब उन्हें मेरे द्वारा पता चला कि चीवर की व्यवस्था हो चुकी है केवल पात्र शेष है तो उन्होंने इसकी सम्पूर्ण जिम्मेदारी ली और अनेकों स्थानों पर खोज करने और उसके लिए दान सहयोग राशि जुटाने के पश्चात अंततः हमारे कार्यक्रम शुरू होने से 3 दिन पूर्व सभी भोजन पात्र व्यवस्थित ढंग से बने हुए, स्टैंड और कवर के साथ हमारे पास पहुंचे!
वास्तव में, यह एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी थी और भगवान बुद्ध के भोजनपात्र को वापिस भारत की बुद्धभूमि पर लेकर आना एक चुनौती जैसा ही था! और पात्र भी 2-4 नहीं बल्कि 1000 पात्र बने! जिसमें सम्पूर्ण समन्वय परिवार के द्वारा महाबोधि विहार, सारनाथ के संघ को 20 पात्र दान किए गए व अंतरराष्ट्रीय त्रिपिटक चेंटिंग में लखनऊ एवं सारनाथ में भी यह भोजन पात्र संघ को दान किया गया! राजेश चंद्रा जी, सम्पूर्ण समन्वय परिवार और सम्पूर्ण दानीदाताओं को जितना आशीर्वाद एवं मंगलकामनाएं दी जाएं उतना कम है! अब बुद्ध काल लौट रहा है घर वापसी कर रहा है!
अभी तक भारत भूमि के लोग चीवर एवं पात्र के लिए अन्य बौद्ध देशों से संपर्क साधा करते थे लेकिन अब भारत फिर से अपनी भूमि पर यह भोजन पात्र और चीवर पाकर धन्य हुआ! अब हम अन्य बौद्ध देशों में फिर से भोजन पात्र देने के लिए तैयार है! और इस महान पुण्य कर्म का संपूर्ण श्रेय महाउपासक राजेश चंद्रा जी और सम्पूर्ण समन्वय परिवार को जाता है!
महाउपासक राजेश चंद्रा जी एवं सम्पूर्ण समन्वय परिवार को इस पुण्य कर्म हेतु बहुत बहुत साधुवाद! जिस प्रकार इस भोजन पात्र में भोजन करने से अनेकों की तृष्णा नष्ट हुई और अनेकों अर्हंत पद को प्राप्त हुए! उसी प्रकार, आप सभी की तृष्णा नष्ट हो, सभी को भूख की वेदना शांत हो और शीघ्र ही सभी परम पद निर्वाण को प्राप्त करें!

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