महावंस जैसे प्राचीन बौद्ध ग्रंथों से यह अब साबित हो चुका है कि, दिपावली वास्तव में प्राचीन बौद्ध उत्सव है जिसे सम्राट अशोक ने आरंभ कर दिया था| तथागत बुद्ध की याद में सम्राट अशोक ने संपुर्ण जम्बूद्वीप में 84 हजार बौद्ध स्तुप बनवाए थे और उनके उद्घाटन के तौर पर सात दिनों का उत्सव मनाया था जिसे आजकल दिपावली कहा जाता है|
बौद्ध स्तुप बनने पर सम्राट अशोक ने सभी नगरों को साफसुथरा बनाने का आदेश जारी किया और सभी बनाए गए स्तुपों पर पुष्पमाला चढाकर तथा उन स्तुपों पर हजरों दिप जलाकर उनकी पुजा करने का आदेश दिया था| स्तुपों के अंदर चैत्य तथा बुद्ध प्रतिपद (बुद्ध के पदचिन्ह) को स्थापित कर उनके पूजा की गई| हर स्तुप में बुद्ध की माँ महामाया की मुर्तियाँ बनाकर उनकी भी पुजा आरंभ की गई थी| इस तरह, सबसे पहले सभी स्तूपों को पुष्पमाला तथा दिपों से सजाया गया, पहले दिन बुद्ध के बचपन की याद में बालक बुद्ध की पूजा (वसुबारस), दुसरे दिन भिक्षुसंघ को धम्मदान किया गया (वर्तमान धनतेरस), उसके बाद बुद्ध की माता महामाया की पूजा (वर्तमान लक्ष्मीपूजन), अगले दिन बुद्ध के पदचिन्हों की पूजा की गई जिसे आजकल बलि प्रतिपदा कहते हैं (महाबली सम्राट अशोक द्वारा बनाए गए बुद्ध के प्रतिपदों की पूजा), अंत में महेंद्र और संघमित्रा इन भाईबहन के धम्मप्रचारक बनने का भाईदूज उत्सव मनाया गया|
वर्तमान में भी इसी बौद्ध तरिके से दिपावली उत्सव मनाना चाहिए| सबसे पहले प्राचीन बौद्ध विहार, गुफा, अपना घर परिसर तथा स्तुपों की साफसफाइ कर उनको पुष्पमाला तथा रंगों से सुशोभित करना चाहिए और इन बौद्ध स्थलों पर तथा स्तुपों पर हजारों दिप जलाने चाहिए, लाईटिंग लगाकर सात दिनों तक बुद्ध तथा अशोक की याद में दिपोत्सव मनाना चाहिए| पहले दिन बालक बुद्ध की पुजा, दुसरे दिन महालक्ष्मी पूजन अर्थात महामाया की पुजा करना, उसके बाद सम्राट अशोक (महाबली) द्वारा स्थापित बुद्धपदों की पुजा करना, और अंत में भाईदूज के दिन धम्मप्रचारक बननेवाले महिला पुरुष तथा युवा युवतियों का विहार में सभी ने मिलकर सत्कार कर भाईदूज उत्सव मनाना चाहिए|
इस तरह, बड़े हर्षोल्लास के साथ दिपावली बौद्ध उत्सव मनाना चाहिए|
-डॉ. प्रताप चाटसे, बुद्धिस्ट इंटरनेशनल नेटवर्क | -Dr. Pratap Chatse, Buddhist International Network