
🌼 अष्टांग मार्ग और उसका अर्थ
तथागत बुद्ध द्वारा दुःख मुक्ति हेतु बताया गया मार्ग
🔷 अष्टांग मार्ग, आठ अंगों वाला मार्ग है, जो जीवन में नैतिकता, पवित्रता और आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करने के लिए आवश्यक है। इस मार्ग को “आर्य अष्टांग मार्ग” भी कहा जाता है।
🪷 अष्टांग मार्ग के आठ अंग और उनका अर्थ:
1. सम्यक् दृष्टि (सम्यक् दृष्टि)
संसार, जीवन, दुःख और उसके कारणों की सही समझ होना।
(चार आर्य सत्यों को समझना।)
2. सम्यक् संकल्प (सम्यक् विचार)
दया, करुणा और अहिंसा के विचार रखना। स्वयं को बुरे विचारों से दूर रखना।
(सद्भावना और शांति का संकल्प।)
3. सम्यक् वाणी (सम्यक् वाणी)
झूठ बोलने, निंदा करने, कठोर या अत्यधिक बोलने से बचना।
(सत्य, प्रेम और सहायता बोलना।)
4. सम्यक् कर्म (सम्यक् कर्म)
हिंसा, चोरी और दुराचार से बचना और शुद्ध आचरण बनाए रखना।
(नैतिक जीवनशैली।)
5. सम्यक् आजीविका (सम्यक् आजीविका)
ऐसे जीवन जीना जिससे दूसरों को नुकसान न पहुँचे।
(सम्यक् व्यवसाय और नौकरी।)
6. सम्यक् प्रयास (सम्यक् प्रयास)
बुरे विचारों से बचना और अच्छे विचारों और कार्यों को विकसित करने का प्रयास करना।
(मन की सकारात्मकता बढ़ाना।)
7. सम्यक् स्मृति (सम्यक् स्मरण/सावधानी)
सदैव सतर्क रहना, हर क्षण जागरूक रहना।
(सचेतनता या साक्षीभाव।)
8. सम्यक् समाधि (सम्यक् समाधि)
मन की एकाग्रता के लिए ध्यान और चिंतन।
(आत्म-शुद्धि, ध्यान और आत्मनिरीक्षण।)
📜 अष्टांगिक मार्ग का महत्व:
यह दुख और अज्ञान से मुक्ति का मार्ग है।
अष्टांगिक मार्ग तीन भागों में विभाजित है: शील (शील), समाधि (ध्यान) और ज्ञान (पन्ना)।
इस मार्ग को मध्यम मार्ग (मज्जिमा पाटीपदा) भी कहा जाता है।
🧘♂️ “आर्य अष्टांगिक मार्ग धम्म का मूल मार्ग है।”