
🪔 धम्म कथा #3
सुजाता और मध्यम मार्ग – अति से समता की ओर
🪷 प्रस्तावना:
तथागत बुद्ध ने जीवन में कठोरतम तपस्या और विलासितापूर्ण जीवन, दोनों का अनुभव किया था। उन्होंने अनुभव से जाना कि इन दोनों अतियों में कोई सार नहीं है। तथागत ने सुजाता नामक एक स्त्री के एक सरल कार्य के माध्यम से मध्यम मार्ग को समझा और उसी मार्ग पर चलकर उन्होंने बुद्धत्व प्राप्त किया।
📖 कथा:
राजकुमार सिद्धार्थ ने सभी सुखों का त्याग कर दिया और तपस्या के लिए वन में प्रवेश किया। वे विभिन्न गुरुओं के पास गए और ध्यान, तपस्या, उपवास, वस्त्र न धारण करने और श्वास रोककर रखने जैसी कई कठोर साधनाएँ कीं। छह वर्षों के बाद, उनका शरीर अत्यंत क्षीण हो गया, केवल हड्डियाँ और त्वचा ही बची रहीं।
उनकी साधना इतनी कठोर थी कि दिन-प्रतिदिन वे मृत्यु के कगार पर पहुँच रहे थे। एक दिन, जब वे नदी के किनारे ध्यान कर रहे थे, तो वे इतने दुर्बल हो गए कि बेहोश हो गए।
तभी उस इलाके में रहने वाली सुजाता नाम की एक युवती देवी को भोग लगाने के लिए खीर बना रही थी। उसने पहले ही प्रार्थना कर ली थी कि अगर उसे पुत्र की प्राप्ति होगी, तो वह किसी तपस्वी को खीर का भोग लगाएगी। उस दिन उसने सिद्धार्थ को देखा – बहुत शांत, तेजस्वी, लेकिन कमज़ोर।
वह आगे बढ़ी, उनके चरणों में प्रणाम किया और बोली,
“आदरणीय महोदय, कृपया यह खीर स्वीकार करें। मैंने इसे देवता के लिए बनाया है, लेकिन मेरे मन में मुझे लगता है कि आप ही वास्तव में पूजा के योग्य हैं।”
बुद्ध ने खीर ले ली। उन्होंने उसे धीरे-धीरे खाया। उनके शरीर में कुछ शक्ति आ गई।
वहाँ से निकलकर उन्होंने नदी में स्नान किया। उन्होंने थोड़ी देर विश्राम किया और शांत मन से सोचा –
“न तो विलासिता और न ही लोभ, ये दो चरम मार्ग मोक्ष की ओर ले जाते हैं।
इन दोनों के बीच कुछ संतुलन होना चाहिए – मध्यम मार्ग!”
उन्होंने उस रात एक वट वृक्ष (बोधि वृक्ष) के नीचे बैठने का निश्चय किया और संकल्प किया –
“जब तक मैं पूर्ण सत्य प्राप्त नहीं कर लेता, मैं यहाँ से नहीं उठूँगा।”
उसी रात, विशाखा पूर्णिमा के दिन, उन्हें बुद्धत्व प्राप्त हुआ।
🧘 धम्म संदेश:
न तप, न विलासिता – कोई भी अति मुक्तिदायक नहीं है।
मध्यम मार्ग समता, संयम और विवेकपूर्ण जीवन है।
सरलता, श्रद्धा और उचित समय पर कर्म करना ही धम्म के सच्चे गुण हैं।
एक स्त्री की सच्ची श्रद्धा भी संतोष और जागृति की ओर ले जा सकती है।
📚 संदर्भ:
महावग्ग (विनय पिटक, महावग्ग Vinaya Pitaka, Mahavagga), बुद्धचरित – अश्वघोष
🔖 संक्षिप्त विचार वाक्य:
“मध्यम मार्ग ही मुक्ति का मार्ग है। दोनों अतियों से बचें।”
– तथागत बुद्ध