
🪔 धम्म कथा #2
📌 कहानी का शीर्षक:
“किसा गौतमी की त्रासदी – जीवन की नश्वरता का सत्य”
🪷 प्रस्तावना:
जीवन में दुखों से बचा नहीं जा सकता। जिन चीज़ों से हम सबसे ज़्यादा प्यार करते हैं, वे एक दिन हमसे छीन ली जाती हैं। लेकिन किसा गौतमी की कहानी एक ऐसी घटना है जो हमें इस दुख को ज्ञान में बदलना सिखाती है। यह कहानी जीवन के वास्तविक स्वरूप – नश्वरता, दुख और अज्ञेयता – की व्याख्या करती है।
📖 विस्तृत कहानी:
किसा गौतमी नाम की एक गरीब लेकिन समर्पित महिला राजगृह नगर में रहती थी। उसका एक छोटा बच्चा था। वह अपने बच्चे से बहुत प्यार करती थी। लेकिन भाग्य ने उसकी परीक्षा ली। एक दिन, उसके बच्चे की अचानक मृत्यु हो गई।
किसा गौतमी के लिए यह स्वीकार करना असंभव था। वह मृत अवस्था में बच्चे को लेकर गाँव-गाँव घूमती रही – डॉक्टर, वैद्य, तांत्रिक और सभी विनती करते रहे, “मेरे बच्चे को जीवित कर दो… कुछ भी करो, लेकिन मुझे मेरा बच्चा वापस दे दो।” लोगों ने उसे समझाया, पर वह नहीं मानी। दुःख के मारे वह बेहोश हो गई थी।
किसी ने उससे कहा, “तुम बुद्ध के पास जाओ। वे स्वयं बुद्ध हैं, शायद वे तुम्हारी मदद करें।”
वह तुरंत बच्चे को छाती से लगाए बुद्ध के पास पहुँची। अश्रुपूर्ण आँखों से उसने विनती की –
“आदरणीय महोदय, मेरा बच्चा मर गया है। कृपया उसे कोई मंत्र, उपाय, ध्यान देकर जीवित कर दीजिए!”
बुद्ध ने शांति से उसकी ओर देखा। उनकी आँखों में करुणा थी।
उन्होंने कहा, “गौतमी, मैं तुम्हें औषधि दूँगा – लेकिन उसके लिए मुझे कुछ सरसों के दाने चाहिए। इन्हें ऐसे घर से लाओ जहाँ कभी किसी की मृत्यु न हुई हो।”
किस्सा गौतमी आशा से दौड़ी। वह घर-घर जाकर पूछती रही – “क्या तुम्हारे घर में कोई मृत्यु हुई है?”
उसे सभी से एक ही उत्तर मिला – “हाँ। हमारा बच्चा, हमारा पिता, हमारी माँ, हमारा पति…”
वह जहाँ भी जाती, वहाँ मृत्यु का साया दिखाई देता।
धीरे-धीरे उसके मन में एक सत्य उभर आया – मृत्यु किसी के लिए भी अपरिहार्य नहीं है। जहाँ जन्म है, वहाँ मृत्यु अवश्यंभावी है। उसका दुःख कम होने लगा और ज्ञान उत्पन्न हुआ।
अंततः, वह बुद्ध के पास लौट आई – परन्तु अब उसके हाथ में सरसों के दाने नहीं थे। उसकी आँखें समझ, शांति और विनम्रता से भर गईं।
उसने कहा, “आदरणीय महोदय, मुझे कोई औषधि नहीं चाहिए। मुझे सत्य मिल गया है। कृपया मुझे धम्म की शरण दीजिए।”
बुद्ध ने उसे भिक्षुणी के रूप में स्वीकार किया। वह आगे चलकर अरहंत बन गई।
📚 संदर्भ:
धम्मपद भाष्य – थेरीगाथा, किशा गौतमी थेरी
🧘 धम्म संदेश:
जहाँ जन्म है, वहाँ मृत्यु अवश्यंभावी है।
दुःख से ज्ञान भी उत्पन्न हो सकता है।
जब सत्य समझ में आ जाता है, तो दुःख की तीव्रता कम हो जाती है।
धम्म का अर्थ है शरण – सत्य, समझ और शांति का मार्ग।
————————————————————————————————–
“मृत्यु को टाला नहीं जा सकता, परन्तु उससे बचने के लिए धम्म की शरण लेनी चाहिए।”
– किसा गौतमी