डॉ. बी.आर. अम्बेडकर को उनकी मृत्यु के लगभग चार दशक बाद 1990 में मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। उन्हें इस सम्मान से सम्मानित करने का निर्णय राष्ट्र के लिए उनके असाधारण योगदान और सामाजिक न्याय और समानता के लिए उनके अथक प्रयासों पर आधारित था।
अंबेडकर को भारत रत्न से सम्मानित किए जाने के प्रमुख कारण यहां दिए गए हैं:
भारतीय संविधान के निर्माता: डॉ. अम्बेडकर ने भारत के संविधान का मसौदा तैयार करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसने देश के लोकतांत्रिक ढांचे की नींव रखी। संविधान को आकार देने, मौलिक अधिकारों को सुनिश्चित करने और सामाजिक न्याय की वकालत करने के उनके प्रयासों को राष्ट्र के लिए अमूल्य योगदान के रूप में पहचाना गया।
दलित अधिकारों के चैंपियन: अम्बेडकर ने अपना जीवन भारत में दलितों के साथ होने वाले सामाजिक भेदभाव और उत्पीड़न के खिलाफ लड़ने के लिए समर्पित कर दिया। समाज के हाशिए पर पड़े वर्गों के उत्थान, समानता को बढ़ावा देने और जाति-आधारित भेदभाव को खत्म करने के उनके अथक प्रयासों ने उन्हें दलित अधिकार आंदोलन में एक प्रमुख व्यक्ति बना दिया।समाज सुधारक और विचारक: सामाजिक न्याय, मानवाधिकार और समानता पर डॉ. अम्बेडकर के विचारों का भारतीय समाज पर गहरा प्रभाव पड़ा है। उन्होंने जाति व्यवस्था के उन्मूलन, महिलाओं के लिए समान अधिकार, भूमि सुधार और हाशिए के समुदायों के आर्थिक सशक्तिकरण की वकालत की। उनका बौद्धिक योगदान और दूरदर्शी विचार पीढ़ियों को प्रेरित करते रहेंगे।
शिक्षाविद् और विद्वान: अंबेडकर ने व्यक्तियों को सशक्त बनाने और सामाजिक परिवर्तन को बढ़ावा देने में शिक्षा के महत्व पर बल दिया। उन्होंने शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना की और समाज के वंचित वर्गों को शैक्षिक अवसर प्रदान करने की दिशा में काम किया। उनकी विद्वता और शैक्षणिक उपलब्धियों ने उनकी मान्यता की योग्यता को और रेखांकित किया।
राष्ट्र के लिए उनके अपार योगदान को देखते हुए, डॉ. बी.आर. अम्बेडकर को मरणोपरांत भारत रत्न से भारत के लोकतांत्रिक संस्थानों को आकार देने, दलितों के अधिकारों की हिमायत करने और सामाजिक न्याय और समानता की वकालत करने के लिए उनके असाधारण काम के लिए सम्मान और स्वीकृति के रूप में सम्मानित किया गया था।