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भगवान बुद्ध का अष्‍टांगिक मार्ग : भगवान बुद्ध ने अष्‍टांगिक मार्ग का उपदेश दिया था। बौद्ध धर्म अनुयायी इन्‍हीं मार्गों पर चलकर मोक्ष प्राप्‍त करते हैं। बुद्ध द्वारा बताए गए इन 8 मार्गों का अपना अलग मतलब है। आइए जानते हैं। 

1. सम्यक दृष्टि :

चार आर्य सत्यों को मानना, जीव हिंसा नहीं करना, चोरी नहीं करना, व्यभिचार( पर-स्त्रीगमन) नहीं करना, ये शारीरिक सदाचरण हैं। इसके अलावा बुद्ध ने वाणी के सदाचरण का पाठ भी पढ़ाया। जिसमें मनुष्‍यों को झूठ न बोलना, चुगली नहीं करना, कठोर वचन नहीं बोलने की शिक्षा दी गई। लालच नहीं करना, द्वेष नहीं करना, सम्यक दृष्टि रखना ये मन के सदाचरण है।

2. सम्यक संकल्प :

चित्त से राग-द्वेष नहीं करना, ये जानना की राग-द्वेष रहित मन ही एकाग्र हो सकता है, करुणा, मैत्री, मुदिता, समता रखना, दुराचरण (सदाचरण के विपरीत कार्य) ना करने का संकल्प लेना, सदाचरण करने का संकल्प लेना, धम्म पर चलने का संकल्प लेना।

3. सम्यक वाणी :

सम्यक वाणी में आता है, सत्य बोलने का अभ्यास करना, मधुर बोलने का अभ्यास करना, धम्म चर्चा करने का अभ्यास करना। बौद्ध धर्म इंसान को मुधर वाणी सिखाता है।

4. सम्यक कर्मांत :

सम्यक कर्मांत में आता है, प्राणियों के जीवन की रक्षा का अभ्यास करना, चोरी ना करना, पर-स्त्रीगमन नहीं करना। बुद्ध ने सत्य और न्याय के लिए हिंसा को, यदि आवश्यक हो तो जायज ठहराया।

5. सम्यक आजीविका :

मेहनत से आजीविका अर्जन करना, पाँच प्रकार के व्यापार नहीं करना, जिनमे आते हैं, शस्त्रों का व्यापार, जानवरों का व्यापार, मांस का व्यापार, मद्य का व्यापार, विष का व्यापार, इनके व्यापार से आप दूसरों की हानि का कारण बनते हो।

6. सम्यक व्यायाम :

आष्टांगिक मार्ग का पालन करने का अभ्यास करना, शुभ विचार पैदा करने वाली चीजों/बातों को मन मे रखना, पापमय विचारो के दुष्परिणाम को सोचना, उन वितर्कों को मन मे जगह ना देना, उन वितर्कों को संस्कार स्वरूप मानना, गलत वितर्क मन मे आए तो निग्रह करना, दबाना, संताप करना।

7. सम्यक स्मृति :

कायानुपस्सना, वेदनानुपस्सना, चित्तानुपस्सना, धम्मानुपस्सना, ये सब मिलकर विपस्सना साधना कहलाता है, जिसका अर्थ है, स्वयं को ठीक प्रकार से देखना। ये जानना की राग-द्वेष रहित मन ही एकाग्र हो सकता है। किसी भी मनुष्य को, जिसे स्वयं को जानने की इच्छा हो, को विपस्सना जरूर करनी चाहिए, इसी से दुख-निवारण के पथ की शुरुआत होगी।

8. सम्यक समाधि :

अनुत्पन्न पाप धर्मो को ना उत्पन्न होने देना, उत्पन्न पाप धर्मो के विनाश मे रुचि लेना, अनुत्पन्न कुशल धर्मो के उत्पत्ति मे रुचि, उत्पन्न कुशल धर्मो के वृद्धि मे रुचि। इन सबको शब्दशः पालन करने से जीवन सुखमय होगा, निर्वाण (सास्वत खुशी, परमानंद एवं विश्राम की स्थिति) की प्राप्ति होगी।

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