बुद्ध को अग्नि के रूप में पुजा जाता है| संयुत्त निकाय में बुद्ध कहते हैं, “मैं अपने अंदर बुद्धत्व का अग्नि जलाता हूँ| … मैं खुद अग्नि हूँ|” (SN, 1.169) बुद्ध को ज्ञान का अग्नि (fire of knowledge) कहते हैं (MKDJT, p. 1588)| ज्ञान का प्रतीक के रूप में बौद्ध शिल्पों में बुद्ध के शरीर से अग्निज्वाला निकलती हुई दिखाते हैं (Eliade, 1965, p. 34)| ज्ञान का महामेरु बुद्ध को दर्शाने के लिए बुद्ध के सिर से भी अग्नि की ज्वालाएं निकलते दिखाई जाती है (Snellgrove, 1978, plates 155, 163, etc)
इस तरह, बुद्ध के ज्ञान को अग्नि का रुप मानते हुए प्राचीन बौद्ध लोग बुद्ध की अग्निदेव के रूप में पुजा करते थे| नीचे स्तुप जैसा उंचा चबुतरा बनाकर उसके उपर बांबू की यष्टि खडी की जाती थी और उसकी पुजा कर उस यष्टि को जलाया जाता था| बांबू की यष्टि और उसके उपर निकलती तीन ज्वालाएं त्रिरत्न का प्रतीक समझकर लोग उनकी पुजा करते थे और उसकी पवित्र राख बुद्धत्व का प्रतीक समझकर अपने सिर पर सम्मानपूर्वक लगाते थे और इस तरह हर साल फाल्गुन पुर्णिमा को बुद्ध उत्सव मनाते थे| आज भी लोग नीचे स्तुप जैसी उंची लकडीयां रखकर उसके उपर त्रिरत्न की बांबू की यष्टि रखते हैं और पुजा कर उसको जलाते हैं| जलाना वास्तव में बुद्धत्व और अनित्यता का प्रतीक है|
बौद्ध शक संवत तथागत बुद्ध की याद में बनाया शाक्य संवत है| यह संवत फाल्गुन पुर्णिमा के दिन समाप्त होकर दुसरे दिन नया साल शुरू होता था| पिछले साल की बुरी यादों को जलाकर लोग दुसरे दिन नये साल का रंगों से उत्सव मनाते थे जिसे आजकल रंगपंचमी कहते हैं| बुद्ध की डोलायात्रा (रथयात्रा) निकालकर लोग प्राचीन काल में यह उत्सव मनाते थे| आज भी बौद्ध राष्ट्रों में सोंगरेन नामक बौद्ध उत्सव इस दिन मनाया जाता है| लोग बुद्ध मुर्ति की रथयात्रा निकालते हैं, उसे रंगबीरंगी पानी से धोते है और फिर बुद्ध मुर्ति को स्तुप में स्थापित कर उस रंगीन पानी को एकदुसरे पर फेंककर नये साल का आनंद उत्सव मनाते है|
बौद्ध रंगोत्सव को वसंतोत्सव कहते हैं| इसे विकृत करने के लिए ब्राम्हणों ने 7 वी 8 वी सदीं में काल्पनिक पुराणकथा लिखकर होलिका नामक काल्पनिक महिला को सामने लाया और त्रिरत्न की अग्निपुजा को होलिका दहन नाम दिया| इस सभ्य बौद्ध उत्सव में गालिगलौच जोडकर उसका विकृतिकरण किया| आज लोग एकदुसरे को गालियाँ देते हैं जो ब्राह्मणवादी असभ्यता का प्रतीक है|
उत्तम व्यक्ति और उत्तम समाज बनाना है तो सबसे पहले ब्राह्मणवादी बुराईयों को छोडना होगा और धम्म की अच्छाईयों को अपनाना होगा| होली की आग में ब्राह्मणवादी बुराईयों को जला दो, ब्राह्मणवादी काल्पनिक कथाओं को जला दो और धम्म की अच्छाईयों को अपनाकर नये शक वर्ष का रंगों के साथ स्वागत करो|
हैप्पी बौद्ध फाल्गुन ऊत्सव | Lighting Holi Means Worshiping The Triratna.
-डॉ. प्रताप चाटसे, बुद्धिस्ट इंटरनेशनल नेटवर्क