
भारतीय इतिहास में, कुछ दिन केवल स्मरण के लिए ही नहीं, बल्कि आत्म-परिवर्तन और सामाजिक जागृति के लिए प्रेरणा का स्रोत भी होते हैं। ऐसी ही दो महत्वपूर्ण घटनाओं का संगम है अशोक विजयादशमी और धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस। इस दिन भारत ने एक नई सामाजिक, धार्मिक और नैतिक क्रांति का मार्ग अपनाया।
धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस – क्या हुआ था?
528 ईसा पूर्व में, गौतम बुद्ध ने सारनाथ में अपने पहले पाँच शिष्यों को धम्म, अर्थात् सत्य और नैतिकता का उपदेश दिया। इस घटना को धम्मचक्र प्रवर्तन – अर्थात् धम्मचक्र प्रवर्तन की शुरुआत के रूप में जाना जाता है। इसी दिन बौद्ध संघ का जन्म हुआ था।
अशोक विजयादशमी – सम्राट अशोक का परिवर्तन का क्षण:
तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में, सम्राट अशोक ने कलिंग युद्ध में हुई हिंसा को देखकर युद्ध का त्याग कर दिया और बुद्ध के धम्म में दीक्षा ली। हिंसा के बजाय उन्होंने करुणा, नैतिकता और शांति का मार्ग अपनाया। विजयादशमी* के दिन उन्होंने लाखों लोगों के साथ दीक्षा ली। इसीलिए इस दिन को अशोक विजयादशमी के नाम से जाना जाता है।
आज इन दिनों का महत्व:
– समानता, बंधुत्व और न्याय के मूलभूत मूल्यों का प्रचार
– बौद्ध संस्कृति का पुनरुत्थान और जागरूकता
– बौद्ध विचारधारा के माध्यम से नई पीढ़ी को नेतृत्व और नैतिकता सिखाने का अवसर
– समाज में व्याप्त भ्रांतियों, असमानता और अज्ञानता को दूर करने का एक प्रयास
धम्म चक्र प्रवर्तन दिवस और अशोक विजयादशमी केवल धार्मिक दिन नहीं हैं, बल्कि आत्म-शुद्धि, सामाजिक सुधार और मानवीय मूल्यों के पुनर्जन्म के क्षण हैं। आइए, इस दिन हम बुद्ध के मार्ग पर चलने का संकल्प लें – जो सम्यक् दृष्टि, करुणा और समता पर आधारित है।