
🪔 धम्म कथा #4
देवदत्त का षडयंत्र और बुद्ध की करुणा
(दुष्टता पर करुणा की विजय)
🪷 प्रस्तावना:
धम्म के मार्ग पर चलने वालों को प्रायः अपमान, विरोध और दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता है। स्वयं बुद्ध के जीवन में भी एक ऐसी ही घटना घटी थी – उनके चचेरे भाई और एक समय के अनुयायी देवदत्त ने बुद्ध पर घातक प्रहार किया था। परन्तु बुद्ध ने उस पर केवल करुणा और क्षमा का ही प्रभाव डाला। यह कथा हमें साहस, क्षमा और धम्म की शक्ति की शिक्षा देती है।
📖 कथा:
देवदत्त राजा शुद्धोदन के भतीजे और सिद्धार्थ के चचेरे भाई थे। ज्ञान प्राप्ति के बाद, देवदत्त भी भिक्षु बन गए। प्रारंभ में, वे धम्म का अध्ययन कर रहे थे, लेकिन अहंकार और शक्ति के मोह में पड़ गए।
वे सोचने लगे – “बुद्ध वृद्ध हो गए हैं, अब मुझे संघ का नेतृत्व संभालना चाहिए।”
उन्होंने बुद्ध से सार्वजनिक रूप से कहा –
“आप मुझे संघ के नेता का पद प्रदान करें।”
बुद्ध ने शांतिपूर्वक उत्तर दिया –
“देवदत्त, तुम अभी इस दायित्व के योग्य नहीं हो।”
यह सुनकर देवदत्त क्रोधित हो गया। उसने बुद्ध के विरुद्ध षडयंत्र रचना शुरू कर दिया।
🔥 कथानक 1:
उसने राजा अजातशत्रु को आश्वस्त किया कि बौद्ध संघ खतरनाक है और उसे नष्ट कर देना चाहिए। अजातशत्रु ने उसका समर्थन किया।
🔥 कथानक 2:
देवदत्त ने बुद्ध पर एक हाथी छोड़ा –
उसने एक क्रूर हाथी, “नालगिरी” को बुद्ध की ओर छोड़ा।
हाथी बहुत तेज़ गति से दौड़ रहा था, सभी भिक्षु भाग गए। लेकिन बुद्ध वहीं खड़े रहे।
जैसे ही हाथी पास आया, बुद्ध ने उसे करुणा से देखा और अपना हाथ उठाया।
हाथी शांत हो गया, बुद्ध के चरणों में बैठ गया। वह पूरी तरह से वश में हो गया।
🔥 कथानक 3:
देवदत्त ने बुद्ध पर मारने के लिए पहाड़ से एक बड़ा पत्थर लुढ़काया।
पत्थर टूट गया और उसका एक टुकड़ा बुद्ध के पैरों पर लगा – वे थोड़े घायल हो गए।
लेकिन उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।
🙏 बुद्ध की करुणा:
इतना सब होने के बाद भी, बुद्ध ने देवदत्त पर क्रोध नहीं व्यक्त किया।
उन्होंने केवल इतना कहा –
“अज्ञान से उत्पन्न क्रोध का उत्तर क्रोध से नहीं दिया जा सकता। केवल करुणा ही अज्ञान के अंधकार को दूर कर सकती है।”
बाद में, देवदत्त रोग से ग्रस्त हो गया। अपनी मृत्यु से पहले, उसे अपनी गलती का एहसास हुआ और वह संघ में लौटने के लिए निकल पड़ा। हालाँकि, रास्ते में ही उसकी मृत्यु हो गई। बुद्ध ने उसकी आत्मा को शांति प्रदान की।
🧘 धम्म संदेश:
- क्रोध पर करुणा, षडयंत्र पर क्षमा, यही धम्म का सच्चा स्वरूप है।
- शत्रु को भी बिना द्वेष के करुणा से देखना, यही बुद्ध की शिक्षा है।
- अहंकार, शक्ति, घृणा – ये धम्म में सबसे बड़ी बाधाएँ हैं।
- क्षमा दुर्बलता का नहीं, बल्कि आत्म-बल का प्रतीक है।
📚 संदर्भ:
विनय पिटक, धम्मपद, जातक कथा – देवदत्त वट्टू
Vinaya Pitaka, Dhammapada, Jataka Katha – Devadatta Vatthu
🔖 सारांश:
“चाहे किसी के मन में कितनी भी घृणा क्यों न हो, उस पर दया करो। क्योंकि करुणा ही धम्म का सच्चा मार्ग है।”
– तथागत बुद्ध