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तथागत बुद्ध को बौद्ध साहित्य में “गोतम” कहा जाता है| “गोतम” मतलब महापुरुष| प्राचीन श्रमण परंपरा में “महापुरिस” संकल्पना थी, जिसका जिक्र बौद्ध साहित्य में भी मिलता है|

बौद्ध साहित्य में सामान्य मनुष्यों की तुलना सामान्य प्राणियों से की गई है| हाथी मतलब सामान्य हाथी प्राणी, लेकिन सफेद हाथी मतलब असाधारण हाथी अर्थात शुद्ध बुद्ध| इसी तरह, गऊ या गो मतलब सामान्य बैल और गऊ उत्तम (गोतम) मतलब असाधारण बैल|

बैल सिंधुकालीन सभ्यता से मूलनिवासी नागवंशी लोगों का महत्वपूर्ण प्राणी रहा है| इसलिए सिंधु सभ्यता में बैल की मुद्राएं मिली है| साधारण बैल केवल मेहनत का काम कर अपने मालिक किसान का भला करता है, इसी तरह साधारण व्यक्ति केवल मेहनत कर परिवार का गुजारा कर सकता है| लेकिन असामान्य व्यक्ति महानतम असाधारण कार्य कर संपुर्ण समाज का उत्थान कर सकता है| बुद्धत्व प्राप्ति के बाद तथागत गोतम असामान्य व्यक्ति बन चुके थे, वे बुद्ध बन चुके थे; इसलिए उनको पुरुषों में उत्तम पुरुष अर्थात “पुरुषोत्तम” कहा जाता है|

तथागत बुद्ध का कुलचिन्ह (टोटेम) बैल था, इसलिए उन्हें गोतम भी कहा जाता है और उनकी माता महाप्रजापति को गोतमी कहा जाता है| बुद्ध असामान्य व्यक्ति होने के कारण उनको उनके बैल कुलचिन्ह से उन्हें मनुष्यों के वृषभदेव (Bull among the men) कहा जाता है| (A Bull of a man, John Powers, p. 41)

तथागत बुद्ध का कुलचिन्ह बैल होने के कारण सम्राट अशोक ने रामपुरवा के शिलास्तंभ पर बुद्ध का प्रतीक बैल अंकित किया था| जब बुद्ध ज्ञान प्राप्ति के बाद कपिलवस्तु लौटे थे, तब उनकी अपने परिवार के साथ हुई भेंट शाक्यों के लिए यादगार और भावनिक पल था| बौद्ध ग्रंथ “बुधचरित” में इसका बेहद आकर्षक वर्णन भिक्खु अश्वघोष ने किया है| जिस तरह बिछडा हुआ बछड़ा अपनी गौ माता से मिलता है, इसी तरह अपने शाक्य गणसंघ से बिछडने के बाद ज्ञान हासिल कर बुद्ध अपने गणसंघ के साथ मिल चुके थे| इसलिए, बुद्ध और शाक्यों की भावभीनी भेंट को गौमाता और बछड़े का मिलन (अर्थात वसुबारस) के रुप में लोग मानते हैं|

-डॉ. प्रताप चाटसे, बुद्धिस्ट इंटरनेशनल नेटवर्क

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