प्रिय भाईयो और बहनो,
१४ अक्टुबर, १९५६ विजयादशमी के दिन बौद्ध धर्म की दीक्षा लेने के बाद नवम्बर, १९५६ को बाबासाहब ने कड़ा या कि में अगर २ वर्ष भी जीता हूँ तो भारत में ५ करोड (१५३) लोग बौद्ध में बना दूंगा, मगर इतने वर्षों बाद भी भारत में बौद्धों की जनसंख्या जनगणना के अनुसार सिर्फ ८४ लाख (०.७%) से भी कम है। बाबासाहब का सपना भारत को बौद्धगय बनाना था। लेकिन, इतने वर्ष के उपरांत भी क्षम अपेक्षित प्रगती नहीं कर पाये। बहुजन समाज (अनुसूचित जाती, अनुसूचित जमात, ओबीसी अर्थात शुव्र समाज और जाती-विरोधक) आचार-विचार से बौद्ध बन रहा है, मगर उसका रुपांतर बौद्ध समाज के रुप में दिखायी नही देता। इस बात को ध्यान में रखकर मिशन २०२१- भारत बौद्धमय करो अभियान को शुरु किया गया है।
प्रश्न १. बहुजनो का धर्म कौनसा है?
उत्तर – बहुजन समाज अपना धर्म हिंदु लिखते है, लेकिन हिंदु शब्द का उल्लेख वेदों, पूराणों में नही मिलता और ना ही १८९१ में अंग्रेजो द्वारा की गयी जनगणना में ‘हिंदु’ शब्द की उत्पती सिंधु शब्द से हुई है। इस शब्द को मुस्लिम राजाओं ने गैर-मुस्लिम समाज के लोगों के लिये उपयोग किया था। मगर, ब्राम्हणों ने मुस्लिम राजाओं से खुद को गैर-हिंदु कहलाकर जिझिया कर माफ करवाया था। भारत के बहुजन समाज की संख्या ८५% है। फिर भी इस समाज से भारत के कितने प्रधानमंत्री बने और उच्चतम न्यायालय मे न्यायधीश बने और संबैधानिक पदों पर रहे, यह एक चिंतन का विषय है। गरीबी की रेखा के निचे जीवन जीनेवाले लोग बहुजन समाज से ही क्यों है? सामाजिक स्तर में सबसे निचला दर्जा क्यों मिला है? पढ़ने-लिखने का अधिकार, संपत्ती और शस्त्र रखने का अधिकार क्यों नकारा गया? मनुस्मृति, गीता जैसे ब्राम्हणी ग्रंथों में क्यों सिर्फ सेवा करने को कहा गया है? क्या बहुजन समाज का और ब्राम्हणी ग्रंथों के रचनाकारों का धर्म एक ही है? अगर धर्म एक है तो एक समाज ने दुसरे समाज को क्यों गुलाम बनाया है? क्या गुलामों और गुलाम बनानेवालों का धर्म एक हो सकता है? अगर नहीं, तो बहुजन समाज का मूल धर्म कौनसा है?
प्रश्न २. क्या बहुजनों का मूल धर्म बौद्ध है?
उत्तर – भगवान बुद्ध के पूर्व भारत में अनेक मत प्रचलित थे। मगर, भगवान बुद्ध के विचारों के प्रभाव में भारत और अन्य देश के लोग आये। बाबासाहब के अनुसार (१) कल के नाग लोग आज के हिंदु है। नाग लोगों ने ही सबसे पहले बौद्ध धर्म का स्विकार किया। (BAWS-18/3 Pg. 506). (२) महाराष्ट्र यह १००% बौद्ध धर्मीय था। (BAWS-18/3 Pg. 421). (३) अस्पृश्य लोग बौद्ध धार्मिय थे। (संदर्भ: अस्पृश्य कौन?: डॉ. आंबेडकर)। (४) सभी भारतीय सांस्कृतिक दृष्ठिकोन से पहले बौद्ध थे। (BAWS-3 Pg. 275). (५) सम्राट अशोक शुद्र समाज (ओबीसी) से थे और बोद्ध धर्म के अनुयायी थे। (६) भारत के सभी संत, सिद्ध एवं नाथ पंथो की उत्पती बौद्ध धमों से हुई है। (मराठी संत साहित्य पर बौद्ध धर्म का प्रभाव- डॉ. भाऊ लोखंडे)। (७) भारत के प्राचिन विहारों पर ब्राम्हणों का अधिकार है। उदा. बुद्ध गया का विहार। मगर, अलग पहचान न होने से सभी खुद को हिंदु ही मानते रहे और स्वतंत्र पहचान के अभाव से भारत से बौद्ध धर्म लुप्त हो गया। इन सभी बातों से सहज ही कहा जा सकता है की, सभी भारतीय विशषेतः शुद्र (ओबीसी) और अवर्ण (एस.सी., एस.टी.) बौद्ध धर्म के अनुयायी रहे है।
प्रश्न ३. बहुजन समाज अपना धर्म बौद्ध ही क्यों लिखे ?
उत्तर – हमारे पूर्वजोंका धर्म बौद्ध रहा है। बौद्ध धर्म के अनेक तत्व भारतीय समाज का अविभाज्य भाग बन गये है। आन भारत के विद्यार्थी विदेश पढाई करने जाते है। लेकिन, हजारों साल पहले विदेश के विद्यार्थी हमारे देश में पढ़ने आते थे। मगर, बौद्ध धर्म का प्रभाव कम होने के साथ जात-पात, अस्पृश्यता बढती गयी। और भारत का पिछले हजार वर्षोंका इतिहास गुलामी का रहा है। इतिहास सामान्यतः इस प्रस्ताव को बल देता है की, राजनैतिक क्रांतिया हमेशा सामाजिक और धार्मिक क्रांतियों के बाद हुई है। १५०० वर्ष पूर्व भारत की प्रगती बौद्ध धर्म के माध्यम से हुई थी और आज भी भारत देश को वह प्राचीन गौरव फिरसे प्राप्त हो सकता है। इसलिए, बहुजन समाज खुद के विकास और देश की प्रगती के लिए अपना धर्म बौद्ध ही लिखे।
प्रश्न ४. क्या धर्म बौद्ध लिखाने से संवैधानिक अधिकार मिलेंगे ?
उत्तर – सभी संवैधानिक प्रावधान धर्म पर नही, तो जाती पर आधारीत है। संवैधानिक नियम १९५० और १९९० के अनुसार, अनुसूचित जाती और अनुसूचित जमात के लोग बौद्ध धर्म के हो सकते है। ओबीसी समाज के लोग भी बौद्ध धर्म के हो सकते है। इसलिए, धर्म बौद्ध लिखाने पर भी संवैधानिक अधिकार मिलेंगे।
प्रश्न ५. क्या धर्म बौद्ध लिखाते समय जाती का उल्लेख आवश्यक है ?
उत्तर – हाँ, संवैधानिक नियम १९५० और १९९० के अनुसार, अनुसूचित जाती और अनुसूचित जनजाती के लोग बोद्ध धर्म के हो सकते है। इसिलिए, धर्म बौद्ध लिखाने पर आप अपनी जाती उदा. महार, चमार, गौड, कुणबी इत्यादी का उल्लेख अवश्य करे। अन्यथा आप की गिनती अनुसूचित जाती, अनुसूचित जमात और ओबीसी में नही होगी। उदा. महाराष्ट्र में भीय लोगो ने अनुसूचित जाती का उल्लेख न करने (विशेषत: रत्नागिरी, अकोला) के कारण कई सालो से बनेट में आर्थिक प्रावधान कम होता रहा है। उवा, महाराष्ट्र मे २०१० में करीब ७०० करोड का प्रावधान कम रहा है। मगर, केंद्रिय और राज्य सरकारें नियमों में सुधार करती है, तो जाती के उल्लेख की आवश्यकता नही होगी।
प्रश्न ६. क्या जाती का उल्लेख करने से बौद्ध धर्म में जातीयाद बढ़ेगा ?
उत्तर – समाज में जातीगत भेद-भाव था। इसलिए, छ. शाहू महाराज और बाबासाहब ने आरक्षण का आधार जाती रखा। मगर, आरक्षण हमेशा नही रहेगा। आज भी बहुजन समाज के ५०% लोग गरीबी रेखा के नीचे है। उनको आरक्षण का आधार न मिलने पर वो उच्च शिक्षा नही ले सकेंगे। महाराष्ट्र में १९६१ बौद्ध समाज ७.०५% था, जो अब २०११ में कम होकर ६.००% रह गया है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार सिर्फ ५०% महार समाज ने ही धर्म बौद्ध लिखाया है। इसका प्रमुख कारण १९९० तक केंद्रिय स्तर और राज्य स्तर पर ६० के दशक से आरक्षण न मिलना था। १९९० तक बौद्ध समाज की जनसंख्या न बढ़ने का कारण धर्म बौद्ध लिखने से आरक्षण नहीं मिलेगा यह डर था। जबकी, भारत में बौद्ध समाज की १९९१ से बढ़ती जनसंख्या का कारण १९९० का संवैधानिक सुधार है।
२५०० सालो से जाती का उल्लेख न करने पर भी भारत से जातीवाद समाप्त नही हुआ अर्थात जाती लिखाने का और जातिवाद का संबंध नहीं है, बल्कि जातिवाद एक मानसिक रोग है और चार वर्षों की सामाजिक व्यवस्था उसका मूल कारण है। लेकिन, बौद्ध धर्म में जात-पात को स्थान नहीं है। बाबासाहब ने जाती व्यवस्था को समाप्त करने के लिए बाबासाहब ने रोटी, बेटी का व्यवहार और ब्राम्हणों द्वारा रचित ग्रंथों की पवित्रता नष्ट करने को कहा। इसके अलावा शुद्रो व अतिशुद्रो का जीवनस्तर उपर उठाने के लिये समाज में स्वाभिमान जगाया, उच्च शिक्षा की प्रेरणा दी और स्वावलंबी बनाने के लिये आरक्षण की व्यवस्था की। (BAWS-18/3 Pg. 317) बौद्ध धर्म की दीक्षा लेने के पश्चात १५ अक्टुबर, १९५६ को आरक्षण न मिलने के संदर्भ में कहा, मेरे लोगों को आरक्षण कैसे मिलेगा, इसके लिये मेरी झोली में अनेक उपाय है। स्पष्टतः बाबासाहब बौद्ध धर्म की दीक्षा के साथ आरक्षण कायम रहे, इसके लिये जागरुक थे। तब सिर्फ जाती का उल्लेख करने मात्र से जातीवाद को बढ़ावा मिलेगा, यह सोचना गलत होगा।
प्रश्न ७. जनगणना में भाषा के तक्ते में पाली क्यों लिखाये ?
उत्तर – २००१ में जनगणना में पाली भाषा बोलनेवालों की संख्या शुन्य है। परंतु, बाबासाहब पाली भाषा का महत्व जानते थे। इसलिए, उन्होने पाली का शब्दकोष लिखा और संविधान में पाली भाषा के लिये प्रावधान किया (संदर्भ: BAWS-18/3 Pg. 414) पाली भाषा के माध्यम से हम इतिहास, ओषधीशास्त्र, मानसशास्त्र और भगवान बुद्ध की वाणी पढ़ सकते है। लेकिन, जानकारी के अभाव से जनगणना के समय अभी तक पाली भाषा का उल्लेख किसीने नहीं किया। जब की, कितनेही लोग पाली में विसरणं, पंचशिल, वंदना और गाथाए जानते है। भन्ते और पाली भाषा के अभ्यासको का गहन अध्ययन है। भगवान बुद्ध के काल की लोक-भाषा अर्थात पाली से ही आज अनेक भाषाओं का जन्म हुआ है। पाली भाषा जानने वालों की संख्या के माध्यम से ही पाली भाषा के विकास की उपाय योजना की जा सकती है। इसिलीए, फरवरी, २०२१ जनगणना के समय भन्ते और पाली भाषा के अभ्यासक पहली और बाकी लोग दुसरी या तिसरी भाषा के रूप मे उल्लेख करे।
इसलिए, बाबासाहब का सपना पूर्ण करने के लिय जनगणना में धर्म ‘बौद्ध‘, भाषा ‘पाली’ और जाती का उल्लेख अवश्य करे।
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