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20 वीं सदी के महान बौद्ध धम्म प्रचारक आंबेडकरी-बौद्ध आंदोलन के ध्वजवाहक बुद्धिवादी लेखक एवं पालि भाषा के अद्वितीय मर्मज्ञ एवं सफल अनुवादक डॉ. भदंत आनंद कौसल्यायन जी के परिनिर्वाण दिवस ( 22 जून,1988 ) के अवसर पर सम्यक प्रकाशन और उसके विशाल लेखकवृंद की ओर से भावपूर्ण आदरांजलि और नमन।
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22 जून को डॉ. भदन्त आनन्द कौसल्यायन जी पुण्यतिथि पर उनको नमन.
#डॉ.भदन्त आनन्द कौसल्यायन को स्मरण करते हुए

डॉ. भदन्त आनन्द कौसल्यायन का जन्म 05 जनवरी, 1905 को अविभाजित पंजाब में मोहाली के निकट सोहना नामक गाँव में एक पंजाबी खत्री परिवार में हुआ था। उनके पिता लाला रामशरण दास अम्बाला में अध्यापक थे। उन्होंने सन् 1920 में 10वीं, 1924 में 19 साल की आयु में लाहौर से स्नातक किया। भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन में भी भदन्त जी ने सक्रिय रूप से भाग लिया। वे महात्मा गाँधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू, बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर और महापंडित राहुल सांकृत्यायन सहयोगी रहे। जिसमें वह बाबा साहेब डॉ. अंबेडकर और राहुल सांकृत्यायन से काफी प्रभावित थे। वे श्रीलंका में जाकर बौद्ध भिक्षु हुए और विद्यालंकार विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में विभागाध्यक्ष भी रहे। उन्होंने भिक्षु जगदीश काश्यप, भिक्षु धर्मरक्षित और राहुल जी के साथ मिलकर पालि तिपिटक के अनेक ग्रन्थों का हिन्दी अनुवाद में किया। जातक की अठ्टकथाओं का 6 खंडो में पालि से हिंदी में अनूदित किया और बाबा साहेब डॉ. अंबेडकर के ग्रंथ बुद्धा एण्ड हिज धम्मा का हिन्दी एवं पंजाबी अनुवाद किया। इसके अलावा उन्होंने कई मौलिक ग्रंथों को रचा जैसे: अगर बाबा न होते, जातक कहानियाँ, भिक्षु के पत्र, दर्शन: वेद से मार्क्स तक, राम की कहानी-राम की जुबानी, मनुस्मृति क्यों जलाई, पच्चीसवाँ घंटा, रेल का टिकट, बहानेबाजी, बौद्ध धर्म एक बुद्धिवादी अध्ययन, बौद्ध जीवन पद्धति, जो भुला न सका, 31 दिन में पालि, पालि शब्दकोश, सारिपुत्र व मौद्गाल्ययान की साँची, अनागरिक धर्मपाल का जीनववृत्त आदि। भदन्त जी का 22 जून, 1988 को नागपुर के मेयो अस्पताल में परिनिर्वाण हो गया।
साभार: डॉ सुरजीत कुमार सिंह, वर्घा

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