ताकत के बल से भारतवर्ष को जीतने आया था लेकिन बुद्ध, धम्म व संघ की शरण आकर महान भिक्खु बना और स्वयं पर विजय पाकर अमर हो गया….
सम्राट अशोक के बाद धम्म की मशाल इंडोग्रीक राजा मिनांडर ने जलाए रखी जो तथागत भगनवान बुद्ध के परिनिर्वाण के पांच सौ साल बाद आया था. उसके राज्य में कंधार, तक्षशिला, काबुल, पेशावर, सिंध, काठियावाड़, पंजाब शामिल थे. लेकिन यह ग्रीक आक्रमणकारी राजा बौद्ध धम्म का महान संरक्षक बना.
मिनांदर एक विद्वान प्रबुद्ध राजा था जो तर्क विद्या में बहुत पारंगत था. वह बौद्ध धम्म के सच्चे सार को समझना चाहता था. प्रकृति, जन्म, मृत्यु, पुनर्जन्म, चित्त का ध्यान, निर्वाण आदि से संबंधित उसके मन में कई जिज्ञासाएं थी लेकिन कोई उसे पूरी नहीं कर पाया.
जीवन के सत्य को जानने का गंभीर जिज्ञासु मिनांडर आखिर निराश होकर बोला-
यह जम्बूद्वीप (भारतवर्ष) तो झूठ मूठ का नाम है, इसमें ऐसा कोई नहीं है जो मेरी शंकाओं को दूर कर सके.
इसी दौरान राजा ने सावनल के विद्वान महान भिक्षु नागसेन की विद्वता के बारे में सुना. वह अपने पाच सौ यवनकों को लेकर खुद बुद्ध विहार में गया और अपनी गंभीर आध्यात्मिक समस्याओं को भिक्खु नागसेन के सामने रखा. विद्वान भिक्खु ने बहुत प्रभावशाली रूप से सारे सवालों, समस्याओं व गुत्थियों को सुलझा कर राजा के संदेहों का समाधान किया.
यह बहुत लंबी चर्चा थी जिसके बाद राजा मिलिंद संतुष्ट होकर स्थविर नागसेन के प्रति विनम्रता से कृतज्ञता प्रकट की. राजा का मन आनंद से भर गया. वह इतना अधिक प्रभावित हुआ कि बुद्ध, धम्म व संघ की शरण ले ली.
राजा ने एक विशाल मिलिंद विहार का निर्माण कराकर भिक्षु संघ को दान किया. ग्रीक में भी धम्मदूत भेजा जहां राजपरिवारों व साधारणजन भी तथागत महामानव महाकारुणिक भगनवान बुद्ध के अनुयायी बने. भारत में ग्रीकों ने बौद्ध धम्म को अपनाकर बौद्ध कला की एक नई शैली चलाई. इसके बाद राजा मिनांदर ने अपने पुत्र को शासन सौंपकर स्वयं भिक्षु बन गए और धम्म की महान सेवा करते हुए अरहत होकर परि निर्वाण को उपलब्ध हुए.
तथागत भगनवान बुद्ध की तरह ही मिनांदर की मृत्यु के बाद भी अस्थि अवशेषों को लेकर कई नगरों में झगड़ा हुआ. आखिर बंटवारा हुआ और हर भाग पर विशाल स्तूप का निर्माण किया गया.
मिनांडर के शासन के सिक्कों पर धम्मचक्र अंकित है. इस राजा ने हिंदू कुश और सिंध प्रदेश में धम्म का व्यापक प्रचार किया. प्रजा भी अपने राजा को बहुत प्रेम करती थी. ऐसे न्यायप्रिय व लोकप्रिय बौद्ध शासक की स्मृति ‘मिलिंद पञ्ह’ (मिलिंद प्रश्न)
‘The Questions of King Menander’ नामक वृहद ग्रंथ के पन्नों और धम्मचक्र से अंकित सिक्कों में सदा अमर रहेगी.
राजा मिलिंद और भिक्षु नागसेन की लंबी धम्म सवाल जवाब चर्चा का यह महत्वपूर्ण ग्रंथ धम्म की गहन शिक्षाओं के लिए पूरी दुनिया में सम्मान से पढ़ा जाता है. हर प्रबुद्ध नागरिक को The Buddha And His Dhamma के साथ “मिलिंद प्रश्न” सुगत प्रकाशन नाम का ग्रन्थ भी अवश्य पढ़ना चाहिए। मुझे पहली बात पता चला की तथागत महामानव कारुणिक गौतम बुद्ध को सुगत नाम से भी जानते है। इस तरह की अनूठी रोचक अनेक जानकारी मिलेगी।
