Mon. Dec 23rd, 2024

एक बार भगवान बुद्ध और उनका संघ राजगृह के वेलुवन विहार मे निवास कर रहे थे,जब उनके पिता राजा शुद्धोधन ने बार बार दूत भेज कर आग्रह कर उन्हें कपिलवस्तु आने का आग्रह किया। तदनुसार भगवान बुद्ध बीस हजार अरहन्त भिक्षुओं के साथ यह यात्रा की,
कपिलवस्तु पहुंच कर उन्होंने अपने रिश्तेदारों को सभा मे वेस्सन्तर जातक कही।दूसरे दिन उन्होंने नगर मे प्रवेश किया।जहां’उत्तिष्ठे नमपमज्ये गाथा कही,इसी के बाद उनके पिता राजा शुद्धोधन स्रोत्तापन निर्वाण अवस्था को प्राप्त हुए,महल मे पहुंचने पर भगवान बुद्ध ने”धम्मचर सुत्त को कहा इससे उनके गृहस्थ जीवन के पिता राजा शुद्धोधन सकदगामी निर्वाण अवस्था को प्राप्त हुए,इसके बाद चंदाकिन्नर जातक सुनाई जो माता यशोधरा के गुणों के संदर्भ मे थी।

तीसरे दिन तथागत बुद्ध के चचेरे भाई राजकुमार नंद का
विवाह समारोह था।भगवान बुद्ध वहां भिक्षा भोजन के लिए गए और भोजन के बाद राजकुमार नंद को भिक्षापात्र सौप दिया।तथागत बुद्ध फिर भिक्षापात्र लिए बिना वापस चले गए।राजकुमा नन्द की होनेवाली पत्नी
राजकुमारी जनपदकल्याणी राजकुमार नन्द को तथागत बुद्ध के पीछे पीछे जाते हुए देख कर,राजकुमार को पुकारते हुए उन्हें जल्दी वापस लौटने को कहने लगी,लेकिन बाद मे नन्द भी भिक्षु बन गया।

तत्पश्चात भगवान बुद्ध श्रावस्ती मे अनाथपिंडक द्वारा निर्मित जेतवन विहार गए।वहां निवास करते समय नन्द
असंतुष्ट था और अपने होने वाली पत्नी के पास लौट जाने का मन बना रहे थे।भिक्षु के रूप मे उन्हे समाधान प्राप्त नही हो रहा था।वह एक गृहस्थ के जीवन मे वापस लौटना चाहते थे क्योंकि वह राजकुमारी जनपदकल्याणी
के शब्दो को याद कर रहे थे ,जो उन्हें वापस बुला रही थी।

यह जानकर तथागत बुद्ध ने उन्हें तावंतीस दिव्यलोक की सुंदर महिला देवियों को ऋद्धिबल से दिखाया जो राजकुमारी जनपदकल्याणी से भी बेहद सुंदर थी।तथागत बुद्ध ने भिक्षु नन्द से अगर वह धम्म के अभ्यास मे कड़ी मेहनत करेंगे,तो उनका विवाह दिव्य देवियों से करने का वादा किया।

दूसरे भिक्षु भिक्षु नन्द का मजाक बनाते की वह धम्म का कड़ा अभ्यास इसलिए कर रहे है,इससे सुंदर महिलाओं को पा सके।भिक्षु नन्द को इससे बहुत पीड़ा और शर्म महसूस हुई।इसलिए उन्होंने एकांत में धम्म का कड़ा अभ्यास किया और अरहन्त अवस्था प्राप्त कर ली।

अरहन्त के रूप मे उनका चित्त किसी भी प्रकार के आसक्ति मुक्त हो गया और तथागत बुद्ध को भी उन्होंने अपने वादे से मुक्त कर दिया।ऐसा ही होगा यह तथागत बुद्ध पहले से ही जानते थे।

तब तथागत ने यह गाथा कही।

यथा अगारं दुच्छञं ,
वुट्ठी न समतिविज्झति ।
एवं सुभावितं चित्तं,
रागो समतिविज्झती।

जैसे अच्छी तरह से नही छाए हुए घर मे
वर्षा का पानी घुस जाता है, वैसेही अभावित
चित्त मे राग घुस जाता है।

यथा अगारं सुछन्न ,
वुट्ठी न समतिविज्झति।
एवं सुभावितं चित्तं,
रागो न समतिविज्झति।।

जैसे अच्छी तरह छाए हुए घर मे वर्षा का पानी नही
घुस पता है,वैसे ही (समथ और विपश्यना से) अच्छी तरह भावीत चित्त मे राग नही घुस पाता है।

– यमकवग्गो

!!अत्त दीप भव!!

Related Post