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भारतीय संविधान के रचयिता बाबा साहब का जन्‍म मध्य प्रदेश के महू में हुआ था. एक साधारण पृष्ठभूमि से उठकर वह स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हाशिए पर पड़े लोगों की मुखर आवाज बने. आज देश ही नहीं विदेशों में भी बाबा साहब को याद किया जा रहा है.
अमेरिका में ‘नीला झंडा’…कनाडा में ‘दलित इतिहास माह’, ऐसे दुनियाभर में याद किये जा रहे अंबेडकर
महू से अमेरिका तक अंबेडकर जंयती के कार्यक्रम, असमानता के खिलाफ बन रहे वैश्विक प्रतीक

बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर की आज जयंती है. एक समय था, जब अंबेडकर जयंती का कार्यक्रम सिर्फ संसद भवन के लॉन तक ही सिमटा नजर आता था. लेकिन पिछले कुछ सालों में ये नजारा बदला है. अब बाबा साहब अंबेडकर का अंतर्राष्ट्रीयकरण हो चुका है, अब वे विश्व रत्न हैं. मध्य प्रदेश के महू से लेकर अमेरिका तक में अब अंबेडकर की विचारधार जोर पकड़ रही है. अमेरिका के जर्सी शहर के सिटी कौंसिल हॉल में अमेरिकी अधिकारियों और भारतीय दूतावास के प्रतिनिधि की उपस्थिति में अंबेडकर जयंती पर नीला झंडा लहराया गया. कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया प्रांत ने भी अप्रैल को दलित इतिहास माह घोषित किया. विश्‍व की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा अपने स्थापना दिवस ‘छह अप्रैल’ से बाबा साहब की जयंती 14 अप्रैल तक ‘सामाजिक न्‍याय सप्ताह’ के रूप में मना रही है. नागपुर सहित कई शहरों में भी कार्यक्रम आयोजित किए गए हैं.

अंबेडकर असमानता के खिलाफ एक वैश्विक प्रतीक…
बाबा साहब अंबेडकर ने एक बार कहा था कि जहां भी हिंदू जाते हैं, वे अपनी जाति को साथ लेकर चलते हैं. अब ब्रिटेन और अमेरिका में जातिगत भेदभाव के खिलाफ कानून बनाने की बात हो रही है. ऐसे में आप कल्‍पना कर सकते हैं कि वह कितने दूरदर्शी थे. अंबेडकर एक निर्विरोध विरासत वाले नेता के रूप में उभरे हैं. ऐसे में विदेशों में भी उनका प्रभाव लगातार बढ़ रहा है. अंबेडकर के विचारों का अंतर्राष्ट्रीयकरण हुआ है. लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से लेकर कोलंबिया तक दुनिया भर के नौ विश्वविद्यालयों में अंबेडकर की प्रतिमाएं मौजूद हैं. वह असमानता के खिलाफ एक वैश्विक प्रतीक बनते नजर आते हैं.

अमेरिका के 20 से ज्‍यादा शहरों में मनाई जा रही अंबेडकर जयंती
अमेरिका में अश्वेत-श्‍वतों के बीच की खाई किसी से छिपी नहीं है. अब भी वहां अश्वेत के साथ भेदभाव की खबरें सुनने को मिल जाती हैं. यही वजह है कि वहां जर्सी सिटी बोर्ड ने हर साल अंबेडकर जयंती को Equality Day के तौर मनाने की विधिवत घोषणा की है. अमेरिकी राज्यों कोलोराडो और मिशिगन ने हाल ही में 14 अप्रैल को डॉ बीआर अंबेडकर इक्विटी दिवस के रूप में घोषित किया. अंबेडकर भी जीवनभर दलितों और पिछड़ों के लिए समानता की बात करते रहे. आज अमेरिका में 20 से ज़्यादा शहरों में अंबेडकर जयंती मनाई जा रही है. प्रमुख कार्यक्रम संयुक्त राष्ट्र में होगा जिसमें यूएन के सेक्रेटरी जनरल एंटोनियो गुटेरेस भी हिस्सा लेंगे. ये अमेरिका में अंबेडकर की बढ़ती महत्‍ता को दर्शाता है. मध्य प्रदेश के महू में अपने जन्मस्थान से लेकर संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय तक, अंबेडकर की वैश्विक आइकन बनने की ये यात्रा महान है.

कनाडा में अंबेडकरवादियों के प्रयास हो रहे सफल
अमेरिका ही नहीं, विश्‍व के अन्‍य देशों में भी अंबेडकरवादियों के प्रयास सफल हो रहे हैं. कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया प्रांत ने भी अप्रैल को दलित इतिहास माह घोषित किया. कनाडा में भारतीयों की संख्‍या काफी अधिक है. पंजाब से काफी संख्‍या में लोग कनाडा में जाकर बसे हैं. दलित जाति का एक बड़ा हिस्‍सा पंजाब में भी रहता है. काफी दलित और पिछड़े भी पंजाब से कनाडा गए हैं, जो वहां समानता के लिए आवाज उठा रहे हैं. कनाडा में रहने वाले अंबेडकरवादियों के प्रयास से यहां ऐसे आंदोलन जोर पकड़ चुका है. इसी का परिणाम है- दलित इतिहास महीना.

मध्य प्रदेश के महू से ब्रिटेन तक अंबेडकर की प्रतिमाएं…
तेलंगाना में अंबेडकर की 125 फीट ऊंची प्रतिमा बनाई गई है. भारत में शायद ही कोई ऐसा शहर हो, जहां अंबेडकर की प्रतिमा नजर न आती हो. अब अमेरिका, यूके और कनाडा सहित कई देशों में अंबेडकर की प्रतिमा स्‍थापित हो रही हैं. यूनाइटेड किंगडम के वॉल्वरहैम्प्टन में बुद्ध विहार के बाहर बाबासाहेब अम्बेडकर की एक प्रतिमा स्थापित की गई है. इससे पहले 14 अक्टूबर, 2000 को ब्रिटेन की डॉ. अंबेडकर मेमोरियल कमेटी द्वारा उनकी प्रतिमा को स्थापित किया गया. यह प्रतिमा यूके में डॉ बीआर अंबेडकर की पहली ओपन-एयर मूर्ति है. यूनाइटेड किंगडम (यूके) में स्थित लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स (एलएससी) में डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर की एक कांस्य प्रतिमा भी स्थापित की गई है. कनाडा, अमेरिका सहित कई देशों में अंबेडकर की प्रतिमाएं नजर आती हैं.

अमेरिका में अंबेडकर के सम्‍मान में नीला झंडा
अमेरिका के जर्सी शहर के सिटी कौंसिल हॉल में अमेरिकी अधिकारियों और भारतीय दूतावास के प्रतिनिधि की उपस्थिति में आज अंबेडकर जयंती पर नीला झंडा, जिसके मध्य में अशोक चक्र है और अमेरिकी झंडा लहराया गया. ये सम्‍मान अमेरिका में बहुत कम नेताओं का प्राप्‍त होती है. अमेरिका में भारतीय डायस्पोरा में उत्पीड़ित, जाति संख्या और संसाधनों में कम हो सकती है, लेकिन वे जाति वर्चस्ववादियों के खिलाफ युद्ध जीत रहे हैं.

यूएस के शहर में जातिगत भेदभाव के खिलाफ कानून
अमेरिका का सिएटल पहला ऐसा शहर बन गया है, जहां जाति आधारित भेदभाव को प्रतिबंधित कर दिया गया है. हालांकि, जातिगत भेदभाव के विरूद्ध बाबा साहब अंबेडकर ने भारत में ये मुहिम दशकों पहले शुरू कर दी थी. अब उसी राह पर अमेरिका जैसा विकसित देश चलता नजर आ रहा है. सिएटल सिटी काउंसिल ने कुछ महीनों पहले शहर के भेदभाव विरोधी क़ानून में जाति को भी शामिल कर लिया है. पारित किए गए अध्यादेश के समर्थकों ने कहा कि जाति आधारित भेदभाव राष्ट्रीय और धार्मिक सीमाओं का अतिक्रमण करते हैं और ऐसे कानून के बिना उन लोगों को सुरक्षा नहीं दी जा सकेगी, जो जातिगत भेदभाव का सामना करते हैं. इसके अलावा वैश्विक स्‍तर पर हाल की घटनाओं से पता चलता है कि भेदभाव के खिलाफ पिछड़ों की लड़ाई जोर पकड़ रही है. अमेरिका में 23 विश्वविद्यालयों ने जातिगत भेदभाव पर प्रतिबंध लगा दिया है, जिनमें ब्राउन विश्वविद्यालय, हार्वर्ड और कैलिफोर्निया राज्य शामिल हैं. इन विश्वविद्यालयों ने अपने परिसरों और समुदायों में जातिगत भेदभाव को दूर करने की आवश्यकता को पहचाना है और ऐसा करने के लिए कार्रवाई की है. ये बाबा साहब अंबेडकर की दिखाई गई राह ही है.

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