मध्य प्रदेश में उज्जैन शहर से 12 किलोमीटर की दूरी पर सोदंग नाम का एक गांव है। विक्रम विश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति और पुरातत्व विभाग के रहमान अली और अशोक त्रिपाठी ने यहां छोटे टीले और प्राचीन खंडहरों को देखने के बाद 1988-89 के दौरान खुदाई की थी। यहां बड़ी संख्या में बौद्ध संस्कृति के अवशेष मिले हैं। इस संबंध में एक रिपोर्ट 1988-89 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा प्रकाशित की गई थी। साथ ही उज्जैन प्रांत में बौद्ध खंडहरों पर एक रिपोर्ट 2004 में प्रकाशित हुई थी।
सोदंग में खुदाई से क्षिप्रा नदी के तट पर एक स्तूप का पता चला। साथ ही वहां से सौ मीटर की दूरी पर एक विहार भी मिला। विहार और स्तूप के आसपास डेढ़ हजार निवासियों का गांव बसा होने के कारण बौद्ध संस्कृति के प्राचीन भग्नावशेष क्षतिग्रस्त हो गए। वहाँ के अशिक्षित लोग मिट्टी, ईंटों, गढ़े हुए पत्थरों और खंभों का उपयोग गृह निर्माण के लिए करते थे। उस गांव के महंत भी यही चाहते थे। प्राचीन बौद्ध संस्कृति के अवशेषों मे इस वर्ग को कोई रुची नहीं है। क्षतिग्रस्त बुद्ध प्रतिमाओं, मूर्तियों देखने के बावजूद “ये देवी का पुराना मंदिर है” ऐसे वो लोगों को आज भी बताते हैं l
दरअसल इस गांव की 40 फीसदी आबादी अनुसूचित जाति की है. लेकिन वे भी वास्तविक इतिहास को नहीं समझ पाए। पुजारी की बात पर विश्वास करते हैं। आज इन क्षतिग्रस्त बुध्द मूर्तियों को देखना बहुत दर्दनाक होता है। ऐसा लगता है कि पूरे मध्यप्रदेश में कई जगहों पर ऐसा हुआ है। दरअसल मध्य प्रदेश, जहां कभी सम्राट अशोक उज्जैन में रहते थे, वास्तव में बुद्ध प्रदेश है। वहां स्तूपों, विहारों, गुफाओं के असंख्य अवशेष मिलते हैं। लेकिन पुजारियों और अन्य उच्च वर्गों ने सही इतिहास को सामने नहीं आने दिया। वैश्य पहाड़ी की खुदाई को रोकने में उनका ही हाथ था। हालाँकि, सच्चाई हमेशा के लिए छिपी नहीं रहती है। जानकार लोग ऐसी जगहों पर जाकर सच्चा इतिहास दुनिया के सामने लाते हैं। इसके लिए मैं सागर कांबले की टीम को बधाई देता हूं।
—संजय सावंत buddhistcaves@gmail.com