भिक्षुओ !
जिस भिक्षु में ये पांच बातें होती है, वह आनापान-स्मृति का अभ्यास करते हुए अचिरकाल में ही अर्हत्वको प्राप्त करता है ।
– तथागत बुद्ध
कोन सी पाँच बाते ?
भिक्षुओ !
वह भिक्षु अल्पार्थी होता है।
अल्प काम-काजी, सुभर ( सुविधा से पोषित किया जा सकने वाला ),जीवन की आवश्यकताओं के विषय में बहुत संतोषी ।
वह अल्पाहारी होता है, पेटू नही होता है।
वह तन्द्रालु नहीं होता, जागरुक रहने वाला होता है।
वह बहुश्रुत होता है, श्रुत को धारण करने वाला, श्रुत के साथ रहने वाला ।
जो ऐसे धर्म होते है जिनका आदि भी कल्याणकारी होता है, मध्य भी कल्याणकारी होता है, अन्त भी कल्याणकारी होता है, जो अर्थ-युक्त और व्यजन-युक्त होते हैं, जो परिपूर्ण रूप में परिशुद्ध ब्रह्मचर्य की प्रशंसा करते हैं, उसके द्वारा वैसे धर्म बहुश्रुत होते है, धारण किये गए होते है, वाणी द्वारा परिचित किए गए होते है, मन द्वारा अनुप्रेक्षित होते है तथा (प्रज्ञा-) दृष्टि द्वारा भली प्रकार हृदयंगम किए गए होते है तथा वह जैसे जैसे उसका चित्त विमुक्त होता है वैसे-वैसे उसकी प्रत्यवेक्षा करता है।
भिक्षुओ !
जिस भिक्षु में ये पाँच बाते होती है, वह आनापान-स्मृति का अभ्यास करते हुए अचिरकाल में ही अर्हत्व को प्राप्त कर लेता है।
“कतमा च आनंद ! आनापानसति ? ”
– तथागत बुद्ध
आनंद ! आनापान- स्मृति क्या है?
“आनापानसति यस्स परिपुण्णा सुभाविता।
अनुपुब्बं परिचिता तथा बुद्धेन देसिता।।
सो इमं लोकं पभासेति अब्भा मुत्तोव चन्दिमा।।”
अर्थात-
आनापान-स्मृति की जिसने परिपूर्ण भली प्रकार से भावना की है, क्रमशः अभ्यास किया है, वह मेघ से मुक्त चन्द्रमा की भाँति इस लोक को प्रकाशित करता है- ऐसा बुद्ध ने कहा है।
फिर बुद्ध ने आनापान स्मृति के विषय में बताया –
आनंद !
यहां भिक्खु अरण्य में वृक्ष के नीचे या शून्यागार में गया हुआ पालथी मारकर शरीर को सीधा करके स्मृति को सामने कर बैठता है।
यह स्मृति के साथ ही साथ रहा हूँ ऐसा जानता है।
छोटा सांस छोडते हुए छोटा सांस छोड रहा है ऐसा जानता है।
छोटा सांस लेते हुए छोटा सांस लेता हूँ ऐसा जानता है।
सारे कार्य का प्रतिसंवेदन करते हुए सांस छोड़ूगा.. ऐसा अभ्यास करता है।
सारे कार्य का प्रतिसंवेदन करते हुए सांस लूंगा.. ऐसा अभ्यास करता है।
कार्य संस्कार को प्रश्रब्ध (शांत करते हुए) सांस छोड़ूगा. ऐसा अभ्यास करता है।
कार्य संस्कार को शांत करते हुए सांस लूंगा.. ऐसा अभ्यास करता है।
प्रीति का प्रतिसंवेदन करते हुए.. सुख का प्रतिसंवेदन करते हुए.. चित्त के संस्कारों का प्रतिसंवेदन करते हुए.. चित्त संस्कार को शांत करते हुए.. चित्त का प्रतिसंवेदन करते हुए.. चित्त को प्रयुम्दित करते हुए.. अनित्य की अनुपश्यना करते हुए.. प्रतिनिसर्ग की अनुपश्यना करते हुए सांस छोड़ूगा ऐसा अभ्यास करता है।
प्रतिनिसर्ग की अनुपश्यना करते हुए सांस लूंगा, ऐसा अभ्यास करता है।
“अयं वुच्चत, आनंद !
आनापान सति।”
आनंद ! इसे आनापान स्मृति कहते है।
– अनुप्रेक्षित सुत्त
अंगुत्तर निकाय
!!अत्त दीप भव!!