
भगवान वेंकटेश्वर को लोकप्रिय भाषा में तिरुपति बालाजी कहते है. यह मंदिर तिरुमलाई पहाड़ी पर स्थित है. यह दक्षिण भारत का एक महत्वपूर्ण विष्णु क्षेत्र है. वेंकटेश्वरन की प्रतिमा को लेकर शुरू से ही विवाद चला आ रहा है.
कुछ लोग इन्हें विष्णु मानते हैं कुछ लोग शिव, तो कुछ लोग शक्ति मानते हैं. कुछ लोग स्कंद मानते हैं. और कुछ हरीहर मानते हैं.
लेकिन इतिहास की सच्चाई यह है कि यह एक प्राचीन बौद्ध तीर्थ स्थल है. यहाँ काले पत्थर की मूर्ति बुद्ध की मूर्ति है. एक समय यहाँ के आदिवासी बौद्ध जनजातियों द्वारा इन्हें देवता के रूप में पूजा जाता था.
जब भारत से बौद्ध धम्म का विलोप हो रहा था. उस काल में ब्राह्मणों द्वारा इस मंदिर को क़ब्ज़े में कर इस मूर्ति का ब्राह्मणीकरण कर दिया. भगवान बुद्ध की प्रतिमा के सिर के बाल, ललाट, लंबे क़ान, हाथ आदि भागों को कपड़े व अन्य चीज़ों से ढककर मूल स्वरूप को छुपा दिया. और बुद्ध से बालाजी बना दिया जो वर्तमान में हैं.
मूर्ति के मूल रूप में दो हाथ ही है जबकि बाद में दो हाथ और जोड़ दिए गए और उनमें शस्त्र पकड़ा दिए गए.
आख़िर ये सब कैसे हुआ? इतिहास के पन्नों को बारीकी से पलटते हुई, गहन रिसर्च के बाद सारी साज़िश और सच्चाई को प्रमाणों के साथ इस किताब में बताया गया है. इस महान किताब के लेखक हैं चंद्रपुर, महाराष्ट्र के प्रसिद्ध शल्य चिकित्सक डॉ के. जमनादास. आज वे इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन उनके प्रमाणों को आज तक कोई भी ग़लत बताने का साहस नहीं कर पाया.
महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने तो प्रमाणों के साथ लिखा था कि भारत में “नाथ” नाम से जितने भी मंदिर या मठ हैं वे सभी प्राचीन बौद्ध विहार व तीर्थ स्थल है. जिनमें केदारनाथ, बद्रीनाथ, जगन्नाथ, सोमनाथ, गोरखनाथधाम प्रमुख हैं.
बुद्ध पब्लिशर्स, जयपुर की यह नई किताब है. डॉ.के ज़मनादास सर की इंग्लिश में लिखी हुई किताब का यह हिंदी अनुवाद है.
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