एवं मे सुत्तं एकं समयं भगवा सावत्थियं विहरति जेतवने अनाथपिंडकस्स आरामे।
तत्र खो भगवा भिक्खु आमन्तेसि भिक्खवोति भदन्तेति ते भिक्खु भगवतो पच्चस्ससोसुं।भगवा एतदवोच:
– ऐसा मैंने सुना। एक समय भगवान श्रावस्ती में अनाथपिण्डिक के जेतवन विहार में करते थे। वहाँ भगवान ने भिक्षुओं को आमंत्रित कर कहा भिक्षुओं !
भदन्त ! – कहकर उन भिक्षुओं ने भगवान को उत्तर दिया।
भगवान ने कहा-
मेत्ताय भिक्खवे चेतोविमुत्तिया आसेविताय भाविताय बहुलीकताय यानीकताय वत्थुकताय अनुट्ठीताय परिचिताय सुसमारद्धाय एकादसानिसंसा पटिकंखा, कतमे एकादस?
भिक्षुओं !
मैत्री चित्त विमुक्ति का अभ्यास करने, बढ़ाने, बार-बार करने, जुड़े हुये यान की तरह लगे रहने, आधार के रूप में वस्तु के समान किये हुये रहने, अधिष्ठित करने, परिचय बढ़ाने और भली प्रकार अभ्यस्त होने में ग्यारह गुण हैं।
कौन से ग्यारह?
“सुखं सुपति,
सुखं पटिबुज्झति,
न पापकं सुपिनं पस्सति,
मनुस्सानं पियो होति,
अमनुस्सानं पियो होति,
देवता रक्खन्ति,
नास्स अग्गि वा विसं वा सत्थं खमति,
तुवटँ चित्तं समाधियति,
मुखवन्नो विप्पसीदति,
असम्मूल्हो कालं करोति,
उतरि अप्पटि विज्झन्तो ब्रह्नलोकुपगो होति।”
🍀सुखपूर्वक सोता है।
🍀सुख से जागता है।
🍀बुरा स्वप्न नहीं देखता है।
🍀मनुष्यों का प्रिय होता है।
🍀अमनुष्यों का प्रिय होता है।
🍀 देवता रक्षा करते हैं।
🍀अग्नि, विष, या हथियार से उसे हानि नहीं पहुँचती।
( अर्थात कोई उसे अग्नि, विष, या हथियार से उसे हानि नहीं पहुँचाते है। )
🍀शीघ्र चित्त एकाग्र होता है।
🍀मुख का वर्ण निखरता है।
🍀होस में रहते हुए मरता है।
🍀आगे के ज्ञान को प्राप्त न होने पर (ब्रह्नलोक को जाता है) सद्गति को प्राप्त होता है।
मेत्ताय भिक्खवे चेतोविमुत्तिया, आसेविताय भाविताय, बहुलीकताय,यनिकताय वत्थुकताय अनुट्ठीताय परिचिताय सुसमारद्धाय इमे एकादसानिसंसा पटिकंखाति। इदमवोच भगवा।
अत्तमना ते भिक्खु भगवतो भासितं अभिनन्दुन्ति।
भिक्षुओं! मैत्री चित्त विमुक्ति का अभ्यास करने, बार, बार, करने जुड़े हुए यान की तरह लगे रहने, आधार के रूप में वस्तु के समान किये हुए रहने, अधिष्ठित करने, परिचय बढ़ाने और भली प्रकार अभ्यास होने में ये ग्यारह गुण हैं।
भगवान ने यह कहा।
उन भिक्षुओं ने प्रसन्न मन से भगवान के भाषण का अभिनन्दन किया।
नमो बुद्धाय 🙏🏻🙏🏻🙏🏻
Ref : अंगुत्तर निकाय