
परिचय:
अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस 21 जून को पूरे विश्व में मनाया जाता है। योग भारत की एक प्राचीन देन है, जो शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य के लिए बहुत उपयोगी है। इस दिन हमें तथागत गौतम बुद्ध के ध्यान पथ के संदर्भ में योग के महत्व को समझने की आवश्यकता है। क्योंकि बुद्ध द्वारा सिखाई गई विपश्यना ध्यान पद्धति योग का एक बहुत ही प्रभावी और वैज्ञानिक हिस्सा है।
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1. बुद्ध और ध्यान – योग का सार
बुद्ध ने अपने बोधिसत्व काल के दौरान कई ध्यान विधियों का अध्ययन किया। उन्होंने शारीरिक रूप से कष्टदायक तपस्या से परहेज किया, मध्यम मार्ग अपनाया और सतीपत्तन (ध्यानपूर्वक ध्यान) और विपश्यना (बुद्धिमान अवलोकन) की विधियाँ विकसित कीं।
विपश्यना का अर्थ है अपने शरीर और मन में होने वाली घटनाओं का अवलोकन करना।
यह ध्यान पद्धति बिना किसी धार्मिक आडंबर के मानसिक स्वच्छता और आत्मनिरीक्षण सिखाती है।
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2. योग का उद्देश्य और बुद्ध का दृष्टिकोण
योग शरीर, मन और आत्मा का संयुक्त संतुलन है। बुद्ध ने योगिक जीवनशैली को अपनाया, लेकिन इसे अंधविश्वासों या कर्मकांडों से मुक्त रखा।
उन्होंने ध्यान को सबसे महत्वपूर्ण साधन माना।
‘सही ध्यान’ अष्टांगिक मार्ग का एक हिस्सा है।
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3. अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस – आधुनिक परिप्रेक्ष्य
2015 से, संयुक्त राष्ट्र ने 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में घोषित किया है। इसके पीछे उद्देश्य हैं:
लोगों में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ाना,
मानसिक शांति और संतुलन प्राप्त करना,
प्राचीन भारतीय ज्ञान के वैश्विक महत्व को प्रदर्शित करना।
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4. बुद्ध और योग – आज की आवश्यकता
आज के तनावपूर्ण जीवन में, बुद्ध और योग द्वारा सिखाई गई ध्यान पद्धतियाँ एक साथ:
मानसिक स्वास्थ्य में सुधार कर सकती हैं,
चिंता, क्रोध, घृणा से छुटकारा पा सकती हैं,
अहिंसा, करुणा और जागरूकता बढ़ा सकती हैं।
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निष्कर्ष:
बुद्ध और योग दोनों ही आत्मशुद्धि, जागरूकता और शांति के मार्ग के दीपक हैं। योग दिवस के अवसर पर हम बुद्ध के ध्यान-आधारित योग मार्ग को अपनाकर एक शांतिपूर्ण, संतुलित और करुणामय समाज का निर्माण कर सकते हैं।
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बौद्ध भारत की ओर से सभी को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ!
“धम्म और योग – दोनों का मिलन, मानवता का उत्कर्ष